गाजियाबाद (करंट क्राइम)। पूर्व मंत्री बालेश्वर त्यागी इन दिनों सुर्खियों में है वो अक्सर अपनी पोस्ट के जरिए अपने शब्दों से तूफान उठाते हैं। उनका कहना है कि वह सही बात उठाते हैं और इस बार उन्होंने लिखा है कि मेरी कोई राजनैतिक महत्वाकांक्षा नहीं है। मैं किसी पद का आकांक्षी भी नहीं हूं। अब मेरा कोई चुनाव लड़ने की भी चाह नहीं है। मैं अपने सेवा के कार्यों में व्यस्त हूँ। मैं लखनऊ भी पांच वर्ष बाद पिछले महीने गया था। सुबह को गया शाम को लौट आया। राजनीति को निकट से देखने का अवसर मिले हैं। मंत्रीगणों की शक्तियों का कुछ कुछ आभास है। राज्य मंत्रियों को पांच साल में कभी कभी पांच फाइल भी देखने को नहीं मिलतीं ऐसे राज्य मंत्रियों को मुख्यमंत्री के सामने अपनी व्यथा रोते देखा है। इसलिए सत्ता का आकर्षण मुझे चमत्कृत नहीं करता है। फिर ऊपर से रहीम दास का दोहा –
गो धन गज धन बाज धन और रत्न धन खान
जब आये सन्तोष धन सब धन धूरि समान।
मैंने सम्मान के बहुत से अवसर देखे हैं। पुलिस स्मृति दिवस पर लखनऊ में परेड की सलामी लेने का अवसर मुझे मिला है। गणतंत्र दिवस पर परेड की सलामी तो कई वर्षों तक लेते रहे।कल्याण सिंह तो मुझे कहते थे कि ये हमारा प्रोटोकाल मंत्री भी है। चाहे अटल हों चाहे उमा भारती या कोई और वीआईपी मुझे सभी के साथ स्टेट प्लेन से जाने के कई अवसर मिलते थे। राजनाथ सिंह जी ने तो प्रभु चावला से सीधी बात में सबसे ईमानदार मंत्री के रूप मेरे नाम का उल्लेख किया था। लाल जी, टण्डन जी ने विधान परिषद में सम्मान के रूप में मेरा उल्लेख किया था। ओम प्रकाश सिंह ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में मेरी मितव्ययिता का उल्लेख किया था। समाचार पत्र भी मेरे बारे में अच्छे अच्छे समाचार छापते थे। उस समय के मुख्य सचिव योगेंद्र नारायण ने तो मुझसे कहा कि इतने अच्छे समाचारों के कारण आपके साथी ही आपसे ईर्ष्या करने लगेंगे। एक छोटा सा राज्य मंत्री रहते शिखर के वैभव का ताप मैंने अनुभव किया है। इसलिए महत्वाकांक्षा नहीं हैं।
नरेंद्र मोदी देश ही नहीं दुनिया के सबसे बड़े नेता हैं। केवल एक बार रामप्रकाश गुप्त तत्कालीन मुख्य मंत्री के आवास पर मोदी जी से भेंट हुई थी । तब मोदी जी महामंत्री संगठन थे । जब रामप्रकाश जी ने मेरा मोदी जी से परिचय कराते हुए कहा था कि ये एक पैसा भी जेब खर्च नहीं लेते हैं। मोदी जी ने कहा था कि फिर कैसे मैनेज करते हैं? रामप्रकाश जी ने कहा कि मैनेज की आवश्यकता ही नहीं पड़ती ये लेते ही नहीं हैं। तब मोदी जी ने कहा कि ये तो फिर देश भर के लिए उदाहरण हैं। कोरोना काल में मोदी जी का फोन मुझे आया था। हमें भाजपा का सत्तारूढ़ होना आनन्ददायक लगता है। 1974 में कौशल किशोर जी जनसंघ के प्रदेश संगठन मंत्री थे, उनका मुख्यालय रमतेराम रोड वाले कार्यालय में था। एक दिन मैंने उनसे कहा कि क्या कभी अटल बिहारी वाजपेयी भी लालकिले की प्राचीर से तिरंगा फैहरायेंगे ,हमारा ये सपना कभी साकार होगा ? कौशल जी ने उत्तर दिया कि आँखे मत खोलो सपना दिखता रहेगा। आज हमारा सपना साकार हो रहा है। अटल जी बाद नरेंद्र मोदी जी तिरंगा फहरा रहे हैं। ये हमारा बहुत पुराना सपना साकार हो रहा है, इसलिए हम अभिभूत हैं।
लेकिन हम कैडर बेस पार्टी के कार्यकर्ता हैं। कार्यकर्ता का भाव हमारे अंदर प्रज्ज्वलित है। उंसके अवमूल्यन से हमें पीड़ा होती है। हम राजनीतिशास्त्र के विद्यार्थी भी रहे हैं। इसलिए लोकतंत्र का अर्थ और उसका महत्व अच्छे से समझते हैं। चुने हुए जनप्रतिनिधि का सम्मान हमारे लिए सर्वोपरि है। सत्ता पक्ष ही नहीं विपक्ष का जनप्रतिनिधि भी उतना ही सम्मानीय है। लोकतंत्र का मतलब केवल चुनाव में वोट डालने तक सीमित नहीं है। वह हर आदमी की गरिमा और सम्मान से जुड़ा है। लोकतंत्र गरीब की लाठी है ,उंसके हितों की रक्षा का सबसे कीमती शस्त्र है। इसके पीछे भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, नेता जी सुभाष बोस जैसे हजारों लोगों का बलिदान लगा है। कोई अंहकारी नेता मतदाता की गरिमा को खंडित नहीं कर सकता है। एक समय जनप्रतिनिधि याचक की भूमिका में होता है । दरवाजे दरवाजे जाकर वोट मांगता है।इस दिन के लिए ही लोकतंत्र गढ़ा गया है। याचक जब दाता बनकर लोगों को दुत्कारे,अपमानित करे। तब उसके खिलाफ बोलना जरूरी है।