साल 2022-23 के अधिकतम और न्यूनतम तापमान में अचानक हुई बढ़त ने 9 राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में उपजने वाली फसलों, फलों, सब्जियों और जानवरों को बुरी तरह से प्रभावित किया था। ज्यादा तापमान के कारण गेहूं और आम की पैदावार पर बुरा असर पड़ा था। फसल के खराब होने से सरकार की नींद इसलिए उड़ी हुई है क्योंकि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है। अगर फसल के उपज पर असर पड़ता है तो व्यापार में भी नुकसान होगा।
फूड इकोनॉमी
जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव त्वचा और सेहत तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि इस समस्या का जल्दी कोई समाधान नहीं निकाला गया तो इसका असर सीधे तौर पर ग्रामीण इलाकों में की जाने वाली खेती पर पड़ेगा। कृषि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी गई है कि इस साल मार्च और अप्रैल में पड़ने वाला मानसून गर्मी की फसलों, ‘रबी’ (सर्दियों) और ‘खरीफ’ (मानसून) की फसलों को नुकसान पहुंचा सकता है। गर्मी की फसलों को होने वाले नुकसान को लेकर सरकार और किसान दोनों ही बेहद चिंतित हैं। ज्यादा गर्मी के कारण मौसमी सब्जियों में कीट का प्रकोप बढ़ जाता है। जिससे किसानों को मौसमी सब्जी का नुकसान होगा।
पावर सेक्टर
अत्यधिक गर्म मौसम से भारत के पावर सेक्टर को भी खतरा है। बढ़ते तापमान का मतलब भूजल को पंप करने के लिए एसी और मोटर जैसे उपकरणों का अधिक उपयोग होगा। इससे बिजली की कमी आएगी। इससे उद्योगों का कामकाज भी प्रभावित होगा, क्योंकि वहां भी परिचालन के लिए बिजली की आवश्यकता होती है। इस बार बिजली की मांग पिछली गर्मियों की तुलना में 20% से 30% तक बढ़ सकती है। बिजली उत्पादन के लिए बड़ी मात्रा में कोयले की जरूरत होती है। भारत में 70% से अधिक बिजली उत्पादन कोयले से ही होता है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, बिजली स्टेशनों पर स्टॉकपाइल्स वर्तमान में 45 मिलियन टन के लक्ष्य से काफी नीचे हैं, जिसे सरकार ने मार्च के अंत तक पूरा करने के लिए कहा था।
लेबर
अत्यधिक गर्मी का प्रभाव श्रम उत्पादकता पर भी पड़ता है और केवल कंस्ट्रक्शन लेबर्स ही ऐसे नहीं हैं, जिन्हें खुले में काम करना पड़ता है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की लगभग 75 फीसदी वर्कफोर्स गर्मी से प्रभावित लेबर पर निर्भर करती है, जो कई बार जानलेवा जैसी गर्मी में काम करता है। इसका अर्थ है कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में श्रम उत्पादकता में भारी गिरावट आएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का 2030 तक गर्मी-तनाव से जुड़ी उत्पादकता में गिरावट से अनुमानित 80 मिलियन वैश्विक जॉबलॉस में से 34 मिलियन का योगदान हो सकता है। तेज गर्मी का लॉन्ग टर्म इंपेक्ट पब्लिक हेल्थ पर है, जो कि इकोनॉमी के लिए एक महत्वपूर्ण एसेट है। अत्यधिक गर्मी से भारत में दिन में काम के घंटों का भारी नुकसान होता है। जैसा कि भविष्य में गर्मी बढ़ने का अनुमान है, यह उत्पादकता को कम करके भारत की जीडीपी के एक बड़े हिस्से को कम कर सकता है। वैश्विक प्रबंधन सलाहकार फर्म, मैक्किंजे एंड कंपनी द्वारा किए गए एक विश्लेषण से पता चलता है कि अत्यधिक गर्मी के कारण भारत में दिन में काम के घंटों में कमी की औसत संख्या उस बिंदु तक बढ़ सकती है, जहां जीडीपी का 2.5 से 4.5 फीसदी सालाना जोखिम में हो सकता है। ये सब भारत की जीडीपी ग्रोथ के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकते हैं। भारत का लगभग 50% सकल घरेलू उत्पाद मुख्य रूप से कृषि, खनन और कंस्ट्रक्शन जैसे सेक्टर्स पर निर्भर है। यहां लोग हाई टेंपरेचर के संपर्क में काफी अधिक आते हैं।