क्यों कहा लोग दल-जाति से ऊपर उठकर महानगर उत्थान के लिए करें मतदान
गाजियाबाद (करंट क्राइम)। पूर्व मंत्री बालेश्वर त्यागी अक्सर अपनी पोस्ट के जरिये कई बार अपने पुराने किस्सों से कभी शासन तो कभी प्रशासन की हालत बताते हैं। पूर्व मंत्री बालेश्वर त्यागी बेहद साफगोई से मौजूदा समय की सियासत को आईना दिखाते हैं। वो भाजपा सरकार में गृह राज्यमंत्री, व्यापार कर मंत्री और बेसिक शिक्षा मंत्री रहे हैं। हाल ही में उन्होंने मेयर चुनाव में दावेदारी को लेकर साफ कहा था कि वो दावेदारी नहीं करेंगे और यदि पार्टी चुनाव लड़ने के लिए भी कहेगी तो भी वो मेयर चुनाव नहीं लड़ेंगे। पूर्व मंत्री बालेश्वर त्यागी चूंकि मेयर पद के लिए दावेदारों में नहीं है लेकिन उन्होंने मेयर चुनाव से पहले अपने शब्दों के जरिये गाजियाबाद के डॉक्टर, वकील, प्रोफे सर से लेकर व्यवसायी तथा अन्य सभी विचारवान लोगों के सामने सुझाव रखा कि सभी मिलकर राजनीतिक दलों को विवश नहीं कर सकते कि वे ऐसा प्रत्याशी बनायें जो नगर निगम को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए काम करें। बालेश्वर त्यागी ने लिखा कि महानगर में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो ईमानदारी को पसंद करते हैं भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहते हैं। भ्रष्टाचार को लेकर निगम और निगम में फैले भ्रष्टाचार को लेकर आखिर बालेश्वर त्यागी ने मेयर चुनाव के समय ही ये सवाल क्यों उठाया। निगम के गठन से लेकर आजतक मेयर पद पर भाजपा काबिज रही है। बालेश्वर त्यागी मेयर चुनाव के दावेदार भी नही हैं, तो फिर वो कौन सा भ्रष्टाचार है और कौन सी सरकार में कौन से मेयर के कार्यकाल में हुआ है जिसे लेकर बालेश्वर त्यागी को भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने की बात करनी पड़ी है। बालेश्वर त्यागी के शब्द आखिर क्या ईशारा कर रहे हैं।
‘एक ऐसा प्रत्याशी बनायें जो नगर निगम को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए काम करें’
गाजियाबाद (करंट क्राइम)। एक बार गोरखपुर के डॉक्टरों ने मिलकर गोरखपुर के नगर निगम में एक किन्नर (हिजड़े) को मेयर चुनवा दिया था। उन्होंने वहां के राजनैतिक दलों को सबक सिखाने के लिए ऐसा किया था क्योंकि सभी राजनैतिक दल बाहुबलियों,अपराधियों को ही टिकट देते थे। डॉक्टरों के सामूहिक प्रयास से वहां ऐसा वातावरण बना कि मतदाताओं ने घोषित रूप से दलीय प्रत्याशियों को हराकर एक निर्दलीय किन्नर (हिजड़े) को मेयर बनवा दिया था। महानगर में बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो ईमानदारी को पसंद करते हैं। भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहते हैं , नगर निगम का एक एक पैसा शहर के विकास पर लगे ऐसा चाहते हैं । लेकिन कभी सामूहिक रूप से भ्रष्टाचार के विरुद्ध कभी कोई अभियान नहीं चला। महानगर के तमाम विचारवान ,सही दिशा में सोचने वाले लोग मिलकर इस बार ऐसा वातावरण बना सकते हैं कि अंधेरा अंधेरा करने से अंधेरा नहीं जाएगा। अंधेरे को भगाने के लिए एक दीप जलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। ऐसे ही भ्रष्टाचार की चर्चा करने से, उसकी आलोचना करने से भ्रष्टाचार नहीं जाएगा।भ्रष्टाचार को हटाने के लिए ईमानदारी के साथ खड़ा होना होगा। ईमानदारी के लिए काम करना होगा। लोगों को प्रेरित करना होगा कि लोग वोट देकर ईमानदारी को चुनें। बस इतना करना है कि महानगर में ऐसा वातावरण बन जाय कि लोग इस दिशा में न केवल सोचें बल्कि आगे बढ़कर उसे मतदान के माध्यम से अभिव्यक्त करें।
मैं एकेला क्या कर सकता हूँ ? मेरे अकेले के करने से क्या फर्क पड़ने वाला है ?इस मनोदशा से निकलने की आवश्यकता है। सब ऐसा करें इसका जिम्मा तो कोई नहीं ले सकता लेकिन अपने से तो हम कर सकते हैं। अगर अच्छा सोचने वाले अपने हिस्से का काम कर दें तो फिर ऐसा सकारात्मक वातावरण बनेगा कि आम आदमी भी ऐसा ही करने लगेगा। बस कुछ लोगों के आगे आने की आवश्यकता है। ईमानदारी के लिए ईमानदारी से पहल करने की आवश्यकता है। महानगर के तमाम विचारवान, अच्छा सोचने वालों, अच्छा चाहने वालों को अपने प्रयासों को सामूहिक बनाने की आवश्यकता है। निर्विवाद और सर्वमान्य लोगों के नेतृत्व में इस अभियान का शुभारंभ करने की आवश्यकता है । किसी ने बड़ी सुंदर पंक्तियां कहीं हैं – अकेला ही चला था, जानिबे मंजिल मगर , लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया!