पॉश कालोनियों से लेकर देहात तक बिखरा हुआ है सदस्यता अभियान
गाजियाबाद (करंट क्राइम)। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव अभी से चुनावी शंखनाद कर चुके हैं। वो मीटिंग में स्पष्ट हाथ उठवा चुके हैं कि जिस भी पूर्व उम्मीदवार को अगले चुनाव में उम्मीदवार बनना है वो अभी से चुनाव लड़ना शुरू कर दे। अखिलेश यादव जानते हैं कि अगर बूथ मजबूत है तो फिर बुनियाद मजबूत है। वो समाजवादी कुनबा बढ़ाना चाहते हैं और इसकी शुरूआत उन्होंने समाजवादी पार्टी के सदस्यता अभियान से की। अभियान केवल खानापूर्ति ना रहे इसका विशेष ध्यान रखा है। इस बार सदस्यता फार्म में इसीलिए आधार कार्ड से लेकर मतदाता पहचान पत्र का नम्बर रखा है। लेकिन पार्टी के मुखिया को ये खबर हो कि दिल्ली से सटे भगवागढ़ गाजियाबाद में समाजवादी साईकिल बिना सारथी के दौड़ रही है। यहां जिले के साईकिल अध्यक्ष से लेकर सिटी के साईक्लिस्ट तक निवर्तमान हैं। हाल ये है कि गाजियाबाद में समाजवादी पार्टी की सदस्यता वाली साईकिल बिना सारथियों के दौड़ रही है। जिस सदस्यता अभियान में आधार कार्ड जरूरी रखा गया है उस सदस्यता अभियान का ही आधार दिखाई नहीं दे रहा है।
जहां दिखे चार मुसलमान वहीं शुरू हो जाता है अभियान
समाजवादी पार्टी का सदस्यता अभियान किस दिशा में चल रहा है यही मालूम नहीं चल रहा है। अभियान किस ट्रैक पर है और साईकिल किस ट्रैक पर है सबसे पहले इसी को ट्रैक करने की जरूरत है। पार्टी के मुस्लिम नेता भी मानते हैं कि सदस्यता अभियान को लेकर कहीं कोई प्लान नही है। वो बता रहे हैं कि जहां भी चार मुस्लिम किसी क्षेत्र में दिखाई देते हैं तो वहीं पर चार समाजवादी नेता पहुंच जाते हैं। मुस्लिम बस्तियों में सदस्यता अभियान को लेकर पूरा जोर रहता है। ये अलग बात है कि सदस्यता अभियान की रसीदें कितनी कटती हैं।
शहर से लेकर देहात तक अभियान है लापता
समाजवादी पार्टी का सदस्यता अभियान शहरी क्षेत्रों की पॉश कालॉनियों से पूरी तरह से लापता है। कविनगर से लेकर राजनगर जैसे इलाकों में ना सपा को कोई शिविर दिखाई देता है और ना ही कोई यहां पर सदस्य बनाते दिखाई देता है जबकि पॉश कालॉनियों में सपा के नेता रहते हैं। चलो शहरी क्षेत्रों में स्पीड स्लो है तो देहात में भी हाल यही है। गांवो में किसने कितने मैम्बर बनाये किसी को पता नहीं। गांव में कहीं कोई कैम्प दिखाई नहीं देते हैं। समाजवादी नेता भी सोशल मीडिया पर नहीं बता पा रहे हैं कि उन्होंने कितने सदसय बनाये हैं। किसको देहात में जिम्मेदारी मिली है किसको शहर में जिम्मेदारी मिली है।
नहीं दिख रही समाजवादी साईकिल आॅन प्लेट फॉर्म डिजिटल
आजकल सोश्ल मीडिया का युग है और भाजपा की सबसे बड़ी ताकत उसका आईटी सेल माना जाता है। स्वयं भाजपा के नेता सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं। उनके पूर्व मेयर भी सोशल मीडिया पर रोज नजर आते हैं और साईकिल वालों के अध्यक्षों के पोस्ट भी रेयर नजर आते हैं। जब समाजवादी पार्टी अपना सदस्यता अभियान चला रही है तो वो सोशल मीडिया पर नजर नहीं आ रही है। समाजवादी साईकिल डिजिटल पर ही नहीं है।
उसके नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं के इक्का दुक्का पोस्ट आते हैं और सपाई डिजिटल मीडिया पर यही नहीं बता पाते हैं कि उन्होंने सदस्यता अभियान वाली कितनी साईकिल चलाई है। किसको क्या जिम्मेदारी मिली है, किसकी अभियान में क्या भागीदारी रही है, कोई पोस्टर भी सोशल मीडिया पर नही है।
अभियान में नहीं मिल रही सपोर्ट तो कहां से मिल जायेंगे वोट
समाजवादी साईकिल इन दिनों सियासी ट्रैक से उतरी हुई है। वो पांच साल पहले सत्ता से बाहर रही है और पांच साल उसे अभी और बाहर रहना है। पार्टी मुखिया इसीलिए सदस्यता अभियान चला रहे हैं। लेकिन राजनगर एक्सटेंशन जैसे एरिया में रहने वाले समाजवादी अपनी फैमिली पोस्ट में ही दिखते हैं तो अर्थले वाले नजर ही नहीं आते। कविनगर वाले कहां हैं कुछ पता नहीं और यूथ से लेकर अन्य प्रकोष्टों की टीमें भी विदआउट थीम चलती नजर आ रही हैं। कितने समाजवादी बने हैं इसकी संख्या ही समाजवादी नहीं बता पा रहे हैं। सपा युवजन सभा की टीमें कहा हैं पता नहीं । सपा का सदस्यता अभियान जिम्मेदारी, भागीदारी और कुनबा एक्सटेंशन को लेकर जमीनी स्तर पर मजबूत नहीं दिख रहा है। जब वोट के लिए मेहनत हो रही है तो सपोर्ट का ही पता नहीं है। समाजवादी पार्टी की यूथ टीमें बूथ पर कहां हैं किसी को नहीं पता। सपा कैसे चुनावी रण में खुद को मजबूत करेगी इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
साईकिल वाले लीडर नहीं कर रहे अभियान को कन्सीडर
गाजियाबाद में सबसे बड़ी बात ये है कि यहां संगठन की चेन ही उतरी हुई है। दोनों अध्यक्ष निवर्तमान हो चुके हैं और सभी फ्रंटल संगठन भंग चल रहे हैं। ऐसे में अभियान को लेकर दिखाई दे रहा है कि साईकिल वाले लीडर ही इस अभियान को कन्सीडर नहीं कर रहे हैं। भगवागढ़ में साईकिल वाले नेता फिलहाल इस अभियान से दूर हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि सपा के पास यहां कई नेता हैं। लेकिन ऐसा लग रहा है कि साईकिल वाले लीडर ही फिलहाल इस अभियान को कन्सीडर नहीं कर रहे हैं और बाद में सारा ठीकरा ईवीएम पर फोड़ रहे हैं।
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