वरिष्ठ संवाददाता (करंट क्राइम)
गाजियाबाद।
कुछ चीजें परम्पराएं होती है और ये परम्पराएं अपने आम में एक इतिहास समेटे होती हैं। गाजियाबाद का जिक्र होगा तो 125 साल पुरानी सुल्लामल रामलीला का जिक्र होगा। ये पहली रामलीला कमेटी है जिसके पास मैदान अपना है। रामलीला के लिए मैदान गाजियाबाद के नवाब ने दान किया था। एक ऐसी रामलीला जिसमें उस्ताद और खलीफा की परम्परा है। एक ऐसी रामलीला जिसमें मंचन के बाद आरती उस्ताद करते हैं। एक ऐसी रामलीला जिसमें कमेटी का सदस्य होना गौरव की बात माना जाता है। लेकिन ये रामलीला आज अपने गौरवमयी इतिहास को खो रही है। हालात ये हैं कि कभी संजीव मित्तल साजू अध्यक्ष को पत्र लिखते हैं। कभी उस्ताद अशोक गोयल अध्यक्ष को समझाने का प्रयास करते हैं। लेकिन रामलीला का वजूद पदाधिकारियों तक सिमट आया है। ये बात कोई और नहीं बल्कि रामलीला का निमंत्रण पत्र बता रहा है।आज रामलीला का भूमि पूजन है और 125 साल पुरानी रामलीला के भूमि पूजन में पहली बार ऐसा हो रहा है जब निमंत्रण पत्र से श्री सुल्लामल रामलीला कमेटी का नाम ही गायब है। भूमि पूजन में कौन मुख्य अतिथि होगा, इसका जिक्र नहीं है और सबसे बड़ी बात ये है कि अध्यक्ष, कनिष्ठ उपाध्यक्ष, कार्यवाहक महामंत्री और कोषाध्यक्ष के नामों के साथ पूरी रामलीला कमेटी को समेट दिया गया है। रामलीला महोत्सव से लेकर भूमि पूजन तक कहीं भी सुल्लामल का जिक्र ही नहीं है। जबकि ये रामलीला ही सुल्लामल रामलीला के नाम से जानी जाती है। इस रामलीला का अपना एक गौरवमयी इतिहास रहा है। आज पहली बार ऐसा होगा जब अपने संस्थापकों के नामों से ही अलग जाकर निमंत्रण पत्र होगा। ऐसा क्यों हुआ है ये तो रामलीला कमेटी के अध्यक्ष बेहतर बता सकते हैं। परत-दर-परत जब अब सच्चाई खुलेगी तो एक के बाद एक कई खुलासे होंगे।
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