गाजियाबाद में भी रहते अगर इतने एक्टिव तो तस्वीर ही होती कुछ और
वरिष्ठ संवाददाता (करंट क्राइम)
गाजियाबाद। सियासी रूप से अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रही कांग्रेस के सामने अब अपने बड़े नेताओं की लड़ाई लड़ने की बारी आई है। कांग्रेस के सामने अब एक सियासी वजूद को बचाने की चुनौती है। कांग्रेस ने अपने बड़े नेताओं की गिरफ्तारी से लेकर ईडी पूछताछ के विरोध में डेरा डाला तो महंगाई के खिलाफ मोर्चा खोला।
एक लम्बे समय के बाद कांग्रेस के नेता जोश में दिखाई दिये। गाजियाबाद के वो कांग्रेस नेता भी दिल्ली में रात के समय एआईसीसी दफ्तर पर नजर आये जो कभी दिन के उजाले में कांग्रेस के किसी भी मामले में नजर नहीं आते थे। कांग्रेस के नेताओं का जोश उनका जज्बा काबिल-ए-तारीफ है और यहां पर अब ये बात भी उठी है कि अगर गाजियाबाद के ये कांग्रेस नेता इतना ही जोश गाजियाबाद में दिखाते तो तस्वीर कुछ और ही होती। चुनाव में हार और जीत अलग पहलू हैं लेकिन जंग को जंगबाजों की तरह लड़ना एक अलग बात होती है। अगर गाजियाबाद के नेता लोकसभा चुनाव से लेकर वार्ड चुनाव तक यही जज्बा दिखायें तो यहां पर सीन कुछ और ही होगा। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के पास मुददे नहीं हैं, ऐसा भी नहीं है कि उसके पास नेता नहीं हैं और ऐसा भी नहीं है कि उसके नेता संघर्ष नहीं करते हैं। लेकिन बात ये है कि वो जब जब करते हैं तब तब कांग्रेस राजनीतिक रूप से एक्टिव दिखाई देती है। बहरहाल ये सीन इस बात की गवाही है कि यदि कांग्रेस के नेता इसी तरह जन मुददों को लेकर भी गम्भीर हो तो जनता में मैसेज जा सकता है। जिस तरह से दिल्ली में बड़े नेताओं को चेहरा दिखाने के लिए डेरा डाला है उसी तरह पब्लिक के बीच भी यदि डेरा डालकर काम करेंगे तो राजनीतिक तस्वीर बदल सकती है।
प्रदेश अध्यक्ष की जमानत यहीं पर हुई थी चुनाव में जब्त
जिस गाजियाबाद में कभी कांग्रेस ने तीन बार के मंत्री और चार बार के सांसद को हराया था उसी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की जमानत यहां बिल्कुल नये उम्मीदवार के सामने जब्त हुई थी। कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर 2014 में गाजियाबाद से लोकसभा चुनाव लड़े थे और उनकी जमानत जब्त हो गयी थी। उन्हें अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ रहे जनरल वीके सिंह ने हराया था। कांग्रेस इसके बाद यहां उभरी नहीं और फिर विधानसभा और लोकसभा का चुनाव जीतने वाले सुरेन्द्र गोयल भी लोकसभा और विधानसभा हार गये। विधानसभा चुनाव में उतरे कांग्रेस के चेहरे जमानत भी नहीं बचा सके। कांग्रेस यहां पर अपने एक ऐसे मजबूत दुर्ग का निर्माण नहीं कर सकी कि वो यहां चुनावी फाईट में आ सके। यहां पर डाली शर्मा ने जरूर दो चुनाव लड़े और दोनों चुनाव हारकर भी उन्होंने एक मजबूत संदेश दिया था।
निगम चुनाव में क्या है संगठन रूप से कांग्रेस की तैयारी
एक पार्षद को लेकर जिला और महानगर की लड़ाई में उलझ जाने वाली कांग्रेस के हालात चुनाव को लेकर सुलझे हुए नहीं हैं। उसके पार्षद भले ही कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते हैं लेकिन कांग्रेस के कई पार्षदों की भगवा इंटीमेसी की खबर मिलती रहती है। अब जब निगम चुनाव में महज चार महीने रह गये हैं। तो ऐसे में यदि कांग्रेस की संगठन तैयारी को देखा जाये तो उसके पास धरातल पर हर वार्ड में प्रभारी भी नहीं हैं। पार्षद को लेकर उसके जिला और महानगर संगठन में तकरार होती है। सतप्रकाश सत्तो से लेकर मनोज चौधरी जैसे पार्षदों को छोड़ दिया जाये तो कांग्रेस की चुनावी तैयारी फिलहाल शून्य है। अगर कांग्रेस यहीं से खुद को मजबूत करने की पहल करे तो निगम चुनाव में वो अपने पुराने स्कोर से आगे आ सकती है।
छाई है सियासी मंदी लेकिन नहीं छूट रही गुटबाजी की आदत गंदी
कांग्रेस के पास गाजियाबाद में अनुभवी नेता हैं। उसके पास सतीश शर्मा से लेकर बिजेन्द्र यादव जैसे नेता हैं। इन नेताओं ने राजनीति में एक अनुभव हासिल किया है। उसके पास यहां जाकिर सैफी जैसे जुझारू नेता हैं। उसके पास यहां लोकेश चौधरी, अजय शर्मा, अश्वनी त्यागी जैसे नेता हैं। हालात कितने भी खराब सही लेकिन इन नेताओं ने कांग्रेस का झंडा नहीं छोड़ा है। वहीं दूसरी तरफ वो नेता भी हैं जो ऐसे माहौल में भी गुटबाजी से बाज नहीं आ रहे। सियासी मंदी है लेकिन उन्हें भी गुटबाजी की आदत गंदी है। कांग्रेस के दो मुस्लिम नेताओं की लड़ाई सोशल मीडिया पर दिखाई देती है। महिला कांग्रेस है भी या नहीं ये भी नहीं पता चल रहा। यूथ कांग्रेस से लेकर एनएसयूआई तक सीन लापता वाला ही है। कांग्रेस के नेता अभी भी एक दूसरे की बुराई में उलझे हैं।
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