वरिष्ठ संवाददाता (करंट क्राइम)
गाजियाबाद।
भगवा कमांडर एक बार फिर से रिपीट हुए हैं और उनके समर्थकों में खुशी की लहर है। टीआरपी के वो बादशाह हैं और शहर विधायक तो ये खिताब उन्हें पिछले साल ही उनके जन्म दिन पर दे चुके हैं। इस बार भी जन्मदिन से अगले दिन ही उन्हें अध्यक्ष वाला पद एक तरह से बर्थडे गिफ्ट मिला। ताजपोशी का ऐलान होते ही जो चेहरे बर्थडे की बधाई से दूरी बना रहे थे। वो पूरी ताकत के साथ बधाई वाले सीन में आ गये। पार्टी कार्याकर्ता बधाई दे रहे हैं । सामान्य सी बात है लेकिन चर्चा तब शुरू हुई जब पार्टी से निष्कासित चल रहे चेहरे भी उन्हें अध्यक्ष पद पर फिर से आसीन होने की बधाई देने के लिए मंदिर में पहुंच गये। अब वैसे तो बधाई कोई भी दे सकता है और शिष्टाचार में बधाई स्वीकार भी की जाती है। लेकिन जब पार्टी के बागी और पार्टी से निष्कासित चेहरे पार्टी के महानगर अध्यक्ष को बधाई देने पहुंचे तो चर्चा दूर तक पहुंची। यहां पार्टी के ही चेहरों ने कहा कि हमें उनकी बधाई से कोई दिक्कत नहीं है लेकिन पार्टी विरोधी गतिविधियों में निष्कासित चल रहे चेहरों की ये बधाई किसी दिन बवंडर करा देगी। दफ्तर ये बागी आ नहीं सकते और मंदिर के अंदर बधाई दी है। वहीं एक दूसरी लॉबी इस बात को कह रही है कि जब पद से इस्तीफा देकर भाजपा को हराने ही निकले थे तो फिर कम से कम अपने तेवरों पर तो बरकरार रहो। और जब मोर्चा खोला है तो फिर ये सीज फायर नहीं होना चाहिए। भगवा कमांडर अभी फिर से अध्यक्ष बने हैं और कम से कम उन्हें किसी कंट्रोवर्सी में मत अपने साथ इन्वॉल्व करो। वो सबको साथ लेकर चलते हैं और पार्टी प्रोटोकॉल में उनकी भी कुछ मर्यादा है। सुना है कि यहां बात इस बात को लेकर भी आ गई है कि जब निष्कासित वाले प्रबुद्ध को लोगे तो फिर उन दोनों प्रबुद्धों को भी ले लो। निष्कासित वालों ने तो फिर भी भाजपा के खिलाफ युद्ध लड़ा लेकिन उन दोनों पूर्व माननीयों और प्रबुद्धों ने तो पूरे चुनाव में फूल की मदद की है। बहरहाल मंदिर की बधाई अंदर नहीं रही और बात बाहर आ गई है। हालांकि बधाई देने वालों के समर्थक भी कह रहे हैं कि बधाई देना कोई गुनाह नहीं है और मंदिर में कोई भी किसी को मिल सकता है। अभिवादन और शुभकामनाएं देना राजनीति नहीं होती, ये शिष्टाचार भी होता है। किसे पार्टी में लेना है किसे नहीं लेना है यह लखनऊ वाले हाईकमान को तय करना है। दूरियां इतनी भी नहीं होनी चाहिए कि नजदीक आने पर भी एक दूसरे से अभिवादन ना हो। लेकिन अभिवादन वालो को भी संगठन वालो की प्रोटोकॉल मजबूरी को समझना चाहिए। पहले भी ये स्थिति आ चुकी है और भाजपा में असली नकली भाजपाई को लेकर चर्चा छिड़ चुकी है।