सियासी नजाकत है या फिर कोई नया समीकरण रही है पार्टी साध
वरिष्ठ संवाददाता (करंट क्राइम)
गाजियाबाद । चुनाव से पहले भाजपा का गैरों से हाथ मिलाना भाजपा के अपनों को खल रहा है। सवाल ये उठ रहा है कि अन्य जिलों में होता तो कोई बात नही थी लेकिन भगवागढ़ में ऐसी कौन सी मजबूरी है जो भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले भाजपा को जरूरी लग रहे हैं। ताजा मामला मोदीनगर के पूर्व विधायक सुदेश शर्मा का है। सुदेश शर्मा रालोद से पूर्व विधायक रहे हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने चुनाव में बड़ी चुनौती ही भाजपा को दी। यहां से भाजपा की डा. मंजू सिवाच मौजूदा विधायक हैं।
मोदीनगर में नगरपालिका परिषद चेयरमैन अशोक माहेश्वरी भाजपा से हैं। भाजपा के गाजियाबाद जिलाध्यक्ष दिनेश सिंघल मोदीनगर से हैं। खास बात ये है कि भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले पूर्व विधायक भाजपाई होने जा रहे थे और संगठन के जिलाध्यक्ष को खबर नही थी। मेरठ में ज्वाईनिंग भी हो गयी और ना स्थानीय विधायक यहां थीं और ना ही जिलाध्यक्ष को पता चला। सवाल यही है कि आखिर भाजपा अपनों को छोड़ गैरों से क्यों हाथ मिला रही है। ये कोई सियासी नजाकत है या फिर पार्टी कोई नया समीकरण साध रही है।
क्यों थाम रखा था राज्यसभा वालों ने पूर्व विधायक का हाथ
मोदीनगर से 15 किलोमीटर की दूरी पर रालोद के पूर्व विधायक भाजपाई हो रहे थे और उसी पार्टी की विधायक को पता नहीं था। सबसे बड़ी बात ये है कि जब सुदेश शर्मा भाजपाई हुए तो यहां उनके बराबर में मंच पर बैठे हुए राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल ने पूर्व विधायक सुदेश शर्मा का हाथ थाम रखा था।
सूत्र बताते हैं कि राज्यसभा वालों ने ही इस ज्वाईनिंग का ताना बाना बुना था और बताते हैं कि टयूनिंग एरर दूर करने के लिए ज्वाईनिंग के बाद अनिल अग्रवाल अपने साथ सुदेश शर्मा को लेकर भाजपा के जिलाध्यक्ष दिनेश सिंघल के घर गये और चाय पी। इस चाय के क्या मायने हैं और ये चाय अभी विधायक और चेयरमैन के यहां डयू है या फिर संगठन की चाय से ही काम चल जायेगा।
महाजनादेश वाले गढ़ में क्या प्रयोग करना चाहती है भाजपा
बागी होकर बसपा से चुनाव लड़े केके शुक्ला को विद टीम किसी थीम के तहत ही फिर से भाजपा में लिया गया। पूर्व विधायक सुदेश शर्मा को भाजपाई बनाया और दो पूर्व विधायकों की चर्चा चल रही है। सवाल ये है कि जिस गाजियाबाद में भाजपा को विधानसभा में देश का सबसे बड़ा जनादेश मिला। जिस लोकसभा में सबसे बड़ा जनादेश मिला। जिस भगवागढ़ में भाजपा निगम से लेकर निकाय और पालिका परिषद से लेकर जिलापंचायत अध्यक्ष पर काबिज है वहां आखिर उसे दूसरे दलों से आये नेताओं को लेने की क्या जरूरत है। जो बागी होकर चुनाव लड़े उनके नाम पर राजी होने की क्या जरूरत है। निगम के सौ वार्ड वाले सदन में वो 65 से ज्यादा पार्षदों के साथ है। अब सवाल सियासी गलियारों में ये उठ रहा है कि आखिर भाजपा महाजनादेश प्राप्त वाले गढ़ में कौन सा प्रयोग करना चाहती है। वो कौन सा लक्ष्य है जिसे लेकर उसे अपनों पर भरोसा नहीं है और वो गैरों के दम पर उस लक्ष्य को पूरा करना चाहती है।
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