गाजियाबाद (करंट क्राइम)। मेरा निजी अनुभव है कि अच्छा आदमी दोस्त तो अच्छा होता ही है दुश्मन भी अच्छा होता है और बुरा आदमी दोस्त भी बुरा और दुश्मन भी बुरा है। अच्छा आदमी दोस्त हो तो दोस्ती अच्छे से निभाएगा लेकिन अगर दुश्मन होगा तो भी उसके दुश्मनी के तरीके भी सभ्य और मर्यादित होंगे और बुरा आदमी दोस्ती में भी कष्ट और पीड़ा देगा और दुश्मनी भी स्तरहीन और घातक करेगा। इसलिए अच्छा आदमी सदैव अच्छा है। अगर जनप्रतिनिधि भी अच्छा हो तो लोगों के लिए कल्याणकारी कार्य करेगा। जिनको सहायता की आवश्यकता है उनकी सहायता करेगा । बुरा जनप्रतिनिधि अपनी सत्ता का उपयोग अपने विरोधियों को प्रताड़ित करने में करेगा। अपने विशेषाधिकारों का दुरुपयोग करेगा। अवैध कमाई के तरीके खोजेगा। समाज में सही लोगों को अनुचित रूप से हानि पहुंचाएगा।
ये बात सर्वविदित है कि जिसके पास जो कुछ है वही वह दूसरों को बांट सकता है। शरीफ आदमी शराफत बांटेगा ,विद्वान आदमी ज्ञान बांटेगा ,सत्संगी सत्संग बांटेगा ,सेवाभावी सेवा बांटेगा। गली का गुंडा ,गालियां बंटेगा ,चाकू छुरे बंटेगा।
आतंकवादी आतंक बांटेगा, अपराधी अपराध बांटेगा। जातिवादी जातिवाद बांटेगा। नफरती नफरत बांटेगा। जिसके पास जो है ,वह वही बांटेगा इसलिए जनप्रतिनिधि जैसा होगा वह अपने मतदाताओं को वैसा ही देगा। प्रतिनिधि अच्छा हो इसमें पहली भूमिका राजनैतिक दलों की है अगर वे अच्छे उम्मीदवार उतारेंगे तो फिर मतदाताओं को अच्छों में से अच्छा चुनने का विकल्प होगा और अगर राजनैतिक दल बुरे प्रत्याशी उतारेंगे तो मतदाताओं में बुरों में से कम बुरे को चुनने का एकमात्र विकल्प होगा।
आजकल उम्मीदवार की जाति भी महत्वपूर्ण होती जा रही है। ये बात ठीक है कि लोकतंत्र में जिस जाति के मतदाता अधिक होतें हैं ,उंसके जीतने की संभावना उतनी ही प्रबल होती है लेकिन प्रत्याशी का अच्छा होना भी महत्वपूर्ण होना चाहिए। एक समय में भाजपा में चाल चरित्र चेहरे की बात प्रमुखता से कही जाती थी ।लेकिन सामाजिक समीकरण भी आवश्यक हैं । सभी को अवसर मिले ये स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है।इसमें कहीं अच्छाई खो न जाय इसे ध्यान रखना आवश्यक है।जीत जितनी महत्वपूर्ण है जीतने
के बाद अच्छा करना उससे भी महत्वपूर्ण है।