गाजियाबाद (करंट क्राइम)। बिहार में जाति जनगणना शुरू हो चुकी, जिसको लेकर सत्ता पक्ष व विपक्ष में खेमे बंदी शुरू हो चुकी है। पिछड़े व दलित जाति के नेता चाहते हैं ये गणना पूरे देश में होनी चाहिए। परंतु कुछ लोग इसे जातिवाद बढ़ाने वाला कदम बता रहे हैं। अंग्रेजों के समय अंतिम जाति जनगणना 1931 में आखिरी बार हुई थी, अंग्रेज सरकार प्रति 10 वर्ष में ये गणना कराती थी। तब से लेकर आज तक सभी सरकारों ने इससे बचने की कोशिश की। 2011 की जनगणना के समय पिछड़ी व दलित जातियों के नेताओं ने सरकार पर दबाव बनाकर जनगणना में जाति भी जोड़ने पर सरकार को बाध्य किया और तत्कालीन सरकार इस पर राजी भी हुई ,परंतु वो आंकड़े आज तक सार्वजनिक नहीं हुए। सत्ता में बैठे लोगों को लगता है कि यदि जातिवार गणना हुई तो उनका ये भेद खुल जाएगा कि आज 70 वर्ष बाद में सभी महत्वपूर्ण पदों पर दो तीन जातियों का ही प्रभाव है। चाहे वो कार्यपालिका हो, न्यायपालिका हो या विधायिका, सभी जगह पर वर्ग विशेष का अधिकार है।
जबकि देश के 90 फीसदी लोगों का प्रतिनिधित्व आज भी बहुत कम है। यही जाति गणना हो गयी तो ये 90 फीसदी लोग अपने अधिकार की मांग करेंगे, देखा जाए तो बाबा साहब के बनाए संविधान की विशेषता है कि वो सभी लोगों को समान अवसर देकर मजबूत राष्ट्र बनाने की कोशिश करता है। इसी आधार पर दलितों को आरक्षण दिया गया तथा पिछड़ों को भी इसी आधार पर 52 फीसदी संख्या में से 27 फीसदी दिया गया।
हजारों साल से जाति भारत की मुख्य समस्या रही है, रामायण में शंबूक ऋषि महाभारत में कर्ण व एकलव्य इसका उदाहरण रहे हैं। वर्तमान की बात करें तो आज भी ऐसे गांव हैं जहां दलित लड़कों को घोड़ी पर बरात निकालने के लिए पुलिस सुरक्षा लेनी पड़ती है। आधुनिक इतिहासकार मानते हैं कि भारत की पराधीनता में एक मुख्य कारण जाति रहा, क्योंकि लड़ने व पढ़ने का अधिकार जाति से ही तय किया जाता रहा। जिसके कारण देश की बड़ी आबादी लड़ने से वंचित रही,
आज भी शादी विवाह से लेकर चुनाव में टिकट जाति देखकर व क्षेत्र में उनकी संख्या के आधार पर ही तय होते हैं, स्वम प्रधानमंत्री अपने को पिछड़े वर्ग का सार्वजनिक रूप से प्रकट करते हैं। कुछ लोग जाति को समस्या मानते हैं तो, उस समस्या को नापने पर उन्हें एतराज क्यों ? जब देश में बाघों की गिनती हो सकती है, मगरमच्छों की गिनती हो सकती है, तो मनुष्य की जाति की गिनती से क्या आपत्ति है, जाति गणना सिर्फ ओबीसी कि थोड़ी ही, सभी लोगों के लिए है गणना सामने आ जाएगी तो सरकारों के सामने स्पष्ट तस्वीर आएगी कि किस योजना का, कितना लाभ, किस जाति को हो रहा है साथ ही न्यायालयों के पास भी एक प्रामाणिक आधार होगा। आरक्षण पर हाल ही में उच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव बिना ओबीसी के कराने का आदेश दिया था, ट्रिपल टेस्ट न कराने के कारण यदि जाति गणना हो चुकी होती तो सरकारों के सामने यह दुविधा नहीं आती, और उसे आयोग न बनाना पड़ता। जबकि संसद में बिना किसी आयोग व गणना के केंद्र सरकार ने ईडब्ल्यूएस कोटा 10 फीसदी लागू कर दिया। जिससे इस देश की बड़ी आबादी को अपने अधिकारों में कटौती महसूस हुई। केंद्र सरकार भी यदि वर्ण या जाति आधारित योजना से बनती है तो उसे लागू करने हेतु उसके पास जाति गणना के प्रमाणिक आंकड़े होने चाहिए।
-सिंकदर यादव
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