लखनऊ से अमेरिका… और अब फिर लखनऊ… इन शब्दों में एक समुंदर पार की दूरी का दर्द सिमट जाता है। लेकिन 23 साल की राखी, जिसे अब महोगनी कहा जाता है, ने इस दूरी को पार करने में कई साल लगा दिए हैं। उसका कहना है कि वह अपने असली माता-पिता की तलाश में भारत आई है।
साल 2000, लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर एक मासूम बच्ची ग्राउंड पेल कर बेताबी से खड़ी थी। कोई आगे, कोई पीछे नहीं। पुलिस अपनी परेंट्स की तलाश में हैं, लेकिन उनका पता नहीं चलता। आखिरकार, मासूम को एक अनाथालय भेज दिया जाता है। दो सालों बाद, एक अमेरिकी महिला ने उसे अपनी गोद में लिया और सात समुंदर पार अमेरिका ले जा चुकी थी।
बच्ची अमेरिका में धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी। इसी बीच, उस महिला की मौत हो जाती है, जिसने उसे गोद लिया था, लेकिन उससे पहले, वह बच्ची को अपनी असली कहानी सुना देती है। जो सच्चाई कहते ही महोगनी को झटका लगता है, और वह अपने बायोलॉजिकल, यानी असली माता-पिता की खोज में बढ़ती है। यह लगता है कि यह असंभव है, लेकिन वह तय करती है कि वह खोज करेगी।
इसी सफलता की कहानी के अंशरूप, अब वह करीब दो दशक बाद भारत वापस आ चुकी है। चलिए, अब हम इस लड़की की कहानी को उसकी जुबानी में जानते हैं।
लखनऊ से अमेरिका और फिर लखनऊ…
दरअसल, यह कहानी एक लड़की की है, जिनका पुराना नाम राखी था, लेकिन जब वह अमेरिका पहुंची, तो उसका नाम महोगनी हो गया। अब वह 23 साल की है और पिछले हफ्ते वह अमेरिका के मिनेसोटा से दिल्ली, और फिर यहां लखनऊ आई है। उसका कहना है कि वह अपने असली माता-पिता की तलाश में भारत आई है।
महोगनी के साथ उसका दोस्त क्रिस्टोफर भी अमेरिका से लखनऊ आया है, और वह महोगनी को उसके परिवार की तलाश में मदद कर रहा है। ये दोनों अब एक स्थानीय कैब ड्राइवर के साथ हैं, जो उन्हें अपनी कार से विभिन्न स्थानों पर ले जाने में मदद कर रहा है, और उनका स्थानीय लोगों के साथ संवाद में भी सहयोग कर रहा है।
आंखों में आंसू, अपनों की तलाश, और हाथों में कुछ फोटोग्राफ
महोगनी अपनी कहानी सुनाते हुए आवाज में भावनाओं को सहज महसूस करती है। उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं। हाथों में, उसके पास उसके बचपन की कुछ फोटोग्राफ हैं, जिन्हें वह हमें दिखाती है। साल 2000 में, मैं पुलिस को लावारिस हालत में लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर मिली थी। कई सारी खोजबीन के बाद, मेरे परिवार का पता नहीं चला, और मुझे लखनऊ के लीलावती मुंशी बालगृह (अनाथालय) भेज दिया गया। वहीं से, करीब दो साल बाद, एक अमेरिकी महिला ने मुझे गोद लिया और साथ लेकर सात समुंदर पार अमेरिका चली गई।
बच्ची अमेरिका में धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी, और इसी दौरान उस महिला का नेचर बदल गया। वह मुझे तंग करने लगी, अपमानजनक बातें कहने लगी, लेकिन इस समय मेरे पास कोई दूसरा ऑप्शन नहीं था, क्योंकि मैं हजारों किलोमीटर दूर अपने देश से दूर थी। पाँच साल पहले, उस महिला का निधन हो गया, और मरने से पहले उसने मुझे अपने बारे में सब कुछ बता दिया था। उसने लखनऊ के अनाथालय का भी जिक्र किया, और मुझे अपनी अद्यतन की हुई जन्म प्रमाण-पत्रिका दी।
अमेरिकी दोस्त के साथ कैसे भारत आई लड़की?
महोगनी कहती है कि वह अमेरिका के मिनेसोटा राज्य स्थित मिनेटोंका (Minnetonka) में एक कैफे में काम करती थी। वहाँ पर, उसकी दोस्ती क्रिस्टोफर नामक एक आर्टिस्ट से हुई। क्रिस्टोफर ने उसकी कहानी सुनकर तय किया कि वह भारत आने में मदद करेगा। तथा पैसों के इंतजाम और वीजा आदि के बाद, वे दोनों पिछले हफ्ते लखनऊ पहुंचे।
लड़की ने अपने बचपन की फोटोज भी दिखाई। एक फोटो में, वह एक फ्रॉक पहने दिखाई देती है, जब वह छोटी थी। दूसरी फोटो में, वह उसे गोद लेने वाली कैरोल के साथ है। ये फोटोज लखनऊ के अनाथालय की हैं, जिनमें अनाथालय के सदस्यों की भी छवियां हैं।
हालांकि राह बहुत मुश्किल है, महोगनी को उम्मीद है कि वह अपने माता-पिता या परिवार के किसी सदस्य को जरूर ढूँढ़ पाएगी। उसके पास अब थोड़े से ही हफ्ते का समय है, क्योंकि उसका वीजा अवधि समाप्त होने वाली है। लेकिन इससे पहले, वह सभी संभावनाओं का उपयोग करना चाहती है। महोगनी ने यह भी कहा कि वह फिर से भारत आएगी और अपनी तलाश जारी रखेगी।
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