7 लोगों की हत्याकांड के आरोपी राहुल को फांसी की सजा देने का मामला
गौरव शशि नारायण
गाजियाबाद (करंट क्राइम)। कहते हैं किसी भी केस में पुलिस की जांच और फॉरेंसिक के साथ रिपोर्ट कई बार महत्वपूर्ण सुराग बन जाती है। उसी के आधार पर पूरे केस की विवेचना होती है और जब मामला कोर्ट में चलता है तो सुनवाई का आधार भी बन जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ है गाजियाबाद में सोमवार को आए सात लोगों के निर्मम हत्याकांड के मुख्य आरोपी राहुल को फांसी की सजा दिए जाने के मामले में, जिसमें उस वक्त के तात्कालिक इंस्पेक्टर गोरखनाथ यादव और फील्ड यूनिट सहयोगी पवन कुमार की मेहनत रंग लाई है। दोनों को सोमवार को जब उनके वर्किंग केस के आरोपी को फांसी की सजा सुनाए जाने की जानकारी मिली तो वह उत्साहित नजर आए। उन्होंने इसे टीमवर्क का परिणाम देते हुए कहा कि आरोपी को सजा सुना दी गई है यह उनके लिए भी राहत देने वाली खबर है।
फॉरेंसिक सबूत इकट्ठा करना था चुनौतीपूर्ण
गाजियाबाद पुलिस में वर्तमान फील्ड यूनिट प्रभारी पवन कुमार ने बताया है कि 21 मई 2013 को जब वह सतीश चंद गोयल के घर पहुंचे थे और टीम के साथ उन्होंने फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने का कार्य शुरू किया था तो वह बेहद चुनौतीपूर्ण था। जगह-जगह खून और शरीर का मांस पड़ा हुआ था। घटनास्थल का नजारा किसी हॉरर फिल्म से कम नहीं था। उन्होंने बताया है कि इस मामले में हत्यारोपी राहुल के पैरों के निशान दीवार पर खून से तने उसके हाथ के निशान उसके गिरफ्तारी के बाद बरामद किए गए कपड़ों और जो सिगरेट पर लार लगी थी वह उसके मुंह की लार का मिलान करना जैसे कई चुनौतीपूर्ण कार्य थे, जो इस सनसनीखेज सात लोगों के हत्याकांड में फॉरेंसिक टीम के द्वारा किए गए थे। पवन ने बताया है कि उस दौरान लगभग एक हजार से ज्यादा फोटोग्राफ मौके के लिए गए थे। साथ ही वीडियो रिकॉर्डिंग भी की गई थी। वहीं घर के प्रत्येक दरवाजे, अलमारी, किचन और उन सामानों के भी फिंगरप्रिंट उतारे गए थे जहां परिवार के साथ-साथ राहुल के आने जाने की संभावना प्रबल थी। बता दें कि गाजियाबाद में अधिकांश सनसनीखेज खुलासों और महत्वपूर्ण घटनाक्रम में फील्ड यूनिट के प्रभारी पवन कुमार का विशेष योगदान रहता है। इस बेहतर कार्य के लिए उनको जोन से लेकर प्रदेश और राष्टÑीय स्तर पर भेजा जा चुका है। वहंी पूर्व डीजीपी की ओर से व कई आईपीएस अधिकारियों की ओर से कई बार उनको सम्मानित भी किया जा चुका है।
तीन दिनों तक इंस्पेक्टर गोरखनाथ यादव ने की थी जिरह
इस पूरे मामले में तात्कालिक इंस्पेक्टर गोरखनाथ यादव ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान तीन दिनों तक जिरह की थी। सोमवार को जब हत्यारोपी राहुल को जुमार्ना और फांसी की सजा का फरमान सुनाया गया तो उनको आज भी वे दृश्य याद आ गया। उन्होंने दैनिक करंट क्राइम से बातचीत करते हुए बताया है कि उनके जीवन में वह पहली घटना थी जिसमें एक साथ सात लोगों का इतनी बेहरहमी से एक साथ मर्डर किया गया हो। घर के हर कोने और हिस्से में खून के निशान मिले थे। उन्होंने बताया है कि पुलिस टीम ने जब वहां एंट्री की थी तो उस वक्त का जो नजारा था उसे देख कई पुलिसकर्मी के होश भी उड़ गए थे। उन्होंने कहा है कि इस पूरे मामले में कोई गवाह नहीं था लेकिन पुलिस टीम और पूरी जांच फॉरेंसिक और सर्विलांस के जरिए की गई। इसी किए आधार पर राहुल को गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने उस वक्त की पुलिस टीम और अधिकारियों को भी धन्यवाद दिया है क्योंकि आज जो फांसी की सजा सुनाई गई है उसमें उनका भी महत्वपूर्ण योगदान रहा था। गोरखनाथ यादव ने कहा है कि चंद पुलिसकर्मी ही ऐसे होते हैं जिनके द्वारा हत्यारोपी को गिरफ्तार किया जाता है और बाद में उसी को फांसी की सजा मिल पाती है। उन्होंने कहा कि गाजियाबाद में 7 लोगों की हत्याकांड पर आए फांसी के फैसले ने उन लोगों में भी न्याय पाने के प्रति उम्मीद बढ़ा दी है जो सालों साल न्यायालय के चक्कर लगाते रहते हैं।