क्यों स्वीकार नहीं किया एमएलसी ने खुद को भाजपा के स्थानीय विधायकों के अध्यक्ष बनाए जाने वाला प्रस्ताव
दीपक भाटी (करंट क्राइम)
गाजियाबाद। भगवा गढ़ की राजनीति में आजकल कई इत्तेफाक एक साथ हो रहे हैं। इत्तेफाक का यह सिलसिला यूं तो काफी पुराना है। मगर हाल ही के महीनों के घटनाक्रमों पर गौर फरमाए तो इत्तेफाक, इत्तेफाक ना होकर हकीकत से लगते हैं। केंद्रीय राज्य मंत्री एवं स्थानीय सांसद जनरल वीके सिंह ने जब दिशा वाली मीटिंग ली थी। तब सबने देखा कि गाजियाबाद के सभी विधायकों की दिशा उस दिन विधायक सुनील शर्मा के भंडारे पर थी। एक तरफ मीटिंग चल रही थी एक तरफ भंडारा चल रहा था। संदेश सब समझ रहे थे कि सब कुछ ठीक नहीं है।
इस मीटिंग में सभी विधायक तो थे ही। यहां पर राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल की मौजूदगी और खासतौर से धौलाना विधायक धर्मेश तोमर की मौजूदगी भी कई संकेत दे रही थी। चर्चा यह थी कि ये मीटिंग नगर निगम चुनाव के कोर में किसी को प्रेशर में लेने का सोचा समझा प्लान थी। या आने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर किसी एकता मोर्चा के गठन का संकेत थी। मीटिंग के बाद जो बातें सार्वजनिक हुई। उसमें बड़े घर की अनदेखी को कुछ ने अपनी ढाल बनाया। फिर उसके बाद एक और इत्तेफाक हुआ। एक मीटिंग और हुई। इस मीटिंग में सिटिंग सभी विधायकों की थी। यह मीटिंग राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल के घर पर थी। यह मीटिंग तब हुई, जिस दिन मुख्यमंत्री गाजियाबाद आए थे। इसी दिन पुलिस वालों से मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में विधायकों की कोई झड़प वाली बात भी सामने आई थी। जिसे बताने वालों ने सोची-समझी रणनीति का हिस्सा बताया। यह हिस्सा फिर गाजियाबाद की राजनीति का किस्सा बना। इसके बाद एक और इत्तेफाक हुआ। अबकी बार जो मीटिंग थी वो राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल के दिल्ली वाले सरकारी आवास पर थी। बताया जाता है कि यहां पर भी सारे विधायक मौजूद थे। इस मीटिंग में एक पूर्व डिप्टी सीएम भी शामिल थे। हालांकि उनका इस मीटिंग में होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया था। लेकिन बाकी सबकी सिटिंग का होना कुछ ना कुछ संकेत दे रहा था। फिर अंदर खाने मीटिंग का दौर लगातार चलता रहा। गाजियाबाद की हॉट चल रही राजनीति में इसी दौरान शीतकालीन सत्र आ गया। लखनऊ में पूर्व मंत्री एवं वर्तमान विधायक अतुल गर्ग के आवास पर पहले दिन ब्रेकफास्ट तो दूसरे दिन लंच डिप्लोमेसी हुई। फॉर्मेट वही था। सभी विधायक एकजुट नजर आए। चर्चाएं तो यह थी कि जिस तरह विधायक और राज्यसभा सांसद लगातार आपस में बैठ रहे हैं। यह एक नया गठजोड़ तैयार हो रहा है। चर्चाएं चलती रही और इस बीच आयुष मंत्रालय का एक सरकारी कार्यक्रम हुआ। कमला नेहरु नगर स्थित यूनानी अस्पताल का उद्घाटन करने के लिए जनरल वीके सिंह आए वह इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित हुए थे। विधायक अतुल गर्ग भी मंचासीन थे। अचानक कार्यक्रम में राज्यसभा सांसद अनिल अग्रवाल की एंट्री हुई। उन्होंने जब देखा कि ना मौके पर उनके नाम की कुर्सी है, ना मंच पर उनके नाम की प्लेट है। तो वह यहां से नाराज होकर चले गए। कहने वाले तो इसे इत्तेफाक नहीं किसी सोची समझी रणनीति का हिस्सा बताते हैं। मगर इत्तेफाक की मानें तो इत्तेफाक हुआ। इत्तेफाकों का सिलसिला लगातार जारी है।
दूसरे प्रस्ताव पर नहीं दिखाई दिनेश गोयल ने सहमति
(करंट क्राइम)। राजनीति में कुछ बैठकों के मायने होते हैं। इससे पहले हम कुछ सवाल करते हैं। यहां पर विधायक अतुल गर्ग ने कहा कि आज जो मीटिंग हुई है, उसमें हमने 2 प्रस्ताव रखे हैं। जिसमें की एक प्रस्ताव पर सहमति बन गई है। दूसरा प्रस्ताव फिलहाल होल्ड है। पहले प्रस्ताव के बारे में सब जानते हैं। यह प्रस्ताव जनप्रतिनिधियों के किसी भी परिवार के सदस्य को चुनावी प्रक्रिया में या बॉयोडाटा वाली प्रक्रिया में दखल नहीं देने पर था। प्रस्ताव में लिखा गया था कि किसी भी जनप्रतिनिधि के परिवार का कोई भी सदस्य किसी भी दावेदार से बायोडाटा ना लें और कोई भी कार्यकर्ता किसी भी परिवार के सदस्य को बायोडाटा ना दें।
साधने वाले तीर अपनी तरफ से बखूबी साध चुके थे। कायदे से जुड़ी बात थी तो चाह कर कोई भी ना करने की स्थिति में नहीं था। बकायदा एक पेज पर पूरा मैटर तैयार हुआ और इस विज्ञप्ति को अखबारों में भिजवाया गया। वही चर्चा यह भी है कि जो जनप्रतिनिधि अपने परिवार के सदस्यों को बायोडाटा नहीं देने की पुरजोर बात कह रहे हैं । उसमें से कितने जनप्रतिनिधियों के पारिवारिक सदस्य राजनीतिक रूप से सक्रिय रहते हैं। चर्चा यही थी कि यहां पर कई जनप्रतिनिधि के तो बच्चे ही अभी शिक्षा हासिल कर रहे हैं। कुछ अपनी व्यवसायिक गतिविधियों में सक्रिय हैं। तो फिर इस रोक वाली प्रक्रिया के पीछे मैन एजेंडे में कौन था ? हालांकि इस बात को वह सब लोग समझ रहे थे जिन्होंने यह पत्र भी तैयार कर आया था और इस पत्र पर अपने हस्ताक्षर भी किए थे। फिर यहां पर एक दूसरे प्रस्ताव की चर्चा हुई। चर्चा यह थी कि विधायक सुनील शर्मा जो कि अब नगर निकाय चुनाव के सभापति बन गए हैं उन्हें यहां के विधायक अपना अध्यक्ष मानते हैं। इस लिहाज से इस बात को रखा गया कि अब सुनील जी के ऊपर अतिरिक्त प्रभार आ गया है। इसलिए अब हम सब में से जो सीनियर है वह इस जिम्मेदारी को संभालेगा। यहां पर सभी विधायकों ने एक सुर में एमएलसी दिनेश गोयल को नए अध्यक्ष के रूप में स्वीकार करने की बात कही। जिसे दिनेश गोयल ने तमाम प्रयासों के बावजूद भी स्वीकार नहीं किया।
वरिष्ठता और उम्र के शिजरे निकाले जाने लगे। उच्च सदन का सदस्य होने के मायने दिए जाने लगे। मगर दिनेश गोयल तो मानो पूरे गेम को समझ चुके थे। उन्हें शायद महसूस हो चुका था कि जनरली उन्हें इसी की घेराबंदी करने के लिए तो तैयार नहीं किया जा रहा। शायद वो समझ रहे थे कि सभी विधायकों का उनके यहां पर आने का उद्देश्य एक तीर से कई निशाने साधने का है। यहां पर दिनेश गोयल ने किसी की भी आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ी। मगर दूसरे प्रस्ताव पर वह अंतिम समय तक ‘ना’ वाली बात के साथ कायम रहे। शायद उन्हें इस बात का एहसास हो गया था कि अगर अध्यक्षता वाली जिम्मेदारी उन्होंने संभाल ली तो फिर इसके संदेश जिस जगह पर देने के प्रयास किए जा रहे हैं, वहां पर कैसे जाएंगे। एक चर्चा यह भी थी कि यहां पर सभी विधायक भाजपा महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा की पैरवी के लिए भी उनके पास गए थे। लेकिन करंट क्राइम की मौजूदगी के दौरान इस तरह की कोई भी चर्चा सुनाई नहीं दी और हमने देखा की इस पूरे घटनाक्रम में संजीव शर्मा खामोशी से बैठे रहे। उन्होंने हमसे यही कहा कि वहां पर सभी जनप्रतिनिधियों के आपसी समन्वय को और मजबूत करने के लिए आए हैं। यहां जब दिनेश गोयल पर अध्यक्ष वाला प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए ज्यादा आग्रह हुआ। तो उन्होंने अतुल गर्ग के पाले में गेंद डाल दी। यहां अतुल गर्ग ने कहा कि मैं मंत्री पद की दौड़ में हूं। मैं यह पद नहीं ले पाऊंगा। यहां पर दिनेश गोयल ने भी तुरंत स्पष्ट कर दिया कि वह भी मंत्री पद की दौड़ में है। इसलिए वह भी इस पद को स्वीकार नहीं कर पाएंगे। मीटिंग रोचकता के चरम पर थी और इसमें काफी मसाला था। अनिल अग्रवाल मिर्ची के पकोड़े का स्वाद लेकर मेरठ निकल चुके थे। सुनील शर्मा भी उनके जाने के बाद चले गए। बाद में मटर पुलाव का भोजन दिनेश गोयल के साथ अतुल गर्ग, अजीत पाल त्यागी और महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा ने किया। चर्चाएं यही हैं कि एक तूफान जो दिनेश गोयल के सामने अचानक आया था। उन्होंने उसे महसूस भी किया और उसकी दिशा को भी काफी बदलने का प्रयास किया। राजनीति में इस तरह के घटनाक्रम होते ही रहते हैं। फिलहाल गाजियाबाद में नगर निगम मेयर का चुनाव है। हर कोई अपनी अपनी फील्डिंग सेट करने में लगा हुआ है। सबकी अपनी अपनी पसंद भी है। हो सकता है कि दिनेश गोयल की भी अपनी कोई पसंद हो। हालांकि वे लगातार कहते हैं कि वह टिकट वाली बात में कार्यकर्ता के साथ हैं। चाहे वह कोई भी हो। मगर यह भी सच है कि उनके भाव भी जनरली साहब को लेकर हमेशा एक लॉबी से बिल्कुल अलग रहते हैं। अगर दिनेश गोयल ने प्रस्ताव नंबर वन के साथ प्रस्ताव नंबर टू को भी स्वीकार कर लिया होता तो यहां पर राजनीति का गेम और रोचक हो जाता। लेकिन एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह उन्होंने एक बॉल को डिफेंसिव खेला तो दूसरी बॉल को पूरी ताकत से बाउंड्री के बाहर कर दिया। क्या दिनेश गोयल के कॉलेज पर हुई मीटिंग भी किसी इत्तेफाक का ही हिस्सा थी। मगर यह भी सच है कि एक प्रस्ताव को पास करा कर विधायक शायद आधी जंग तो जीत ही चुके थे। सबसे ज्यादा बायोडाटा किसके परिवार के सदस्य की ओर से रिसीव किए जा रहे हैं। यह भी किसी से छिपा नहीं है।
शनिवार को यूं बना एमएलसी दिनेश गोयल के पास जाने का इत्तेफाकन प्रोग्राम
(करंट क्राइम)। इसी बीच शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में एक धरना-प्रदर्शन कलेक्ट्रेट में आयोजित हुआ। इस प्रदर्शन में सभी विधायक, राज्यसभा सांसद मौजूद थे। फिर यहां से इत्तफाकन प्लान बना कि कुछ देर सभी हम विधायक अजीत पाल त्यागी के कार्यालय पर बैठेंगे। सबकी सिटिंग यहां पर हुई। यहां से एक और इत्तेफाक हुआ। सभी ने निर्णय लिया कि चलिए एमएलसी दिनेश गोयल से मुलाकात कर ली जाए। इत्तेफाकन इस बार भी गाजियाबाद के सभी विधायक विद लोनी विधायक नंदकिशोर गुर्जर और भाजपा अध्यक्ष संजीव शर्मा, दिनेश गोयल के आरकेजीआईटी वाले कॉलेज पर पहुंचे। बताया जाता है कि यहां पर दिनेश गोयल को सूचना यह थी कि केवल राज्यसभा सांसद ही उनसे मिलने आ रहे हैं। मगर कुछ देर बाद ही दिनेश गोयल के कॉलेज में गाड़ियों का काफिला आ गया। विधायक अजीत पाल त्यागी, विधायक सुनील शर्मा, विधायक अतुल गर्ग, महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा, दिनेश गोयल के कार्यालय पर पहुंच गए। इस मीटिंग की भनक करंट क्राइम को भी लगी। हमने मौके पर जाकर चौका भी मारा । देखा कि सभी विधायक, एमएलसी दिनेश गोयल के समक्ष बैठे थे। यहां पर पकौड़ा डिप्लोमेसी चल रही थी। खासतौर से दिनेश गोयल की ओर से सभी विधायकों को मिर्च के पकौड़े खिलाए जा रहे थे। दिनेश गोयल के आॅफिस पर सभी विधायकों, राज्यसभा सांसद, महानगर अध्यक्ष की मौजूदगी कई तरह के सवाल खड़े कर रही थी। हालांकि सभी एक ही पार्टी से ताल्लुक रखते हैं और सभी एक दूसरे के पास आने-जाने के लिए स्वतंत्र हैं।
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