किसी का हो ना हो मगर कार्यकर्ता का हो जायेगा नुकसान
गाजियाबाद (करंट क्राइम)। सरकार वालों में तकरार होना कोई नई बात नहीं है। कई बार किन्हीं मुददों पर जब विचार नहीं मिलते तो तकरार हो जाती है। लेकिन भगवागढ़ में एमएलसी के कॉलेज में सरकार वालों के बीच एक तकरार ऐसी भी हुई जिसमें सबने चाय पी, पुलाव खाया, पकोड़े खाये और फिर इस मीटिंग के साईड इफैक्ट तब आये जब एमएलसी दिनेश गोयल ने एक लैटर लिख दिया। लैटर के मैटर को लेकर ही तूफान आ गया। सबने कहा हमने ऐसा नहीं कहा था लेकिन ना जाने कहां से इसमें लोकसभा सांसद का नाम आ गया। बात ये थी कि कोई भी जनप्रतिनिधि के परिवार का सदस्य किसी से भी उसका चुनावी आवेदन पत्र स्वीकार नहीं करेगा। इसी स्वीकार शब्द को लेकर भाजपा के राज्यसभा सांसद, भाजपा के विधायक और भाजपा के एमएलसी के बीच सीन आॅफ तकरार आ गया। अब कौन समझाये कि इस पूरे घमासान में नुकसान तो कार्यकर्ता का ही होना है। इसलिए ये घमासान खत्म होना चाहिए। क्योंकि कोई भी विवाद जब पावरफुल लोगों के बीच होता है तो इस विवाद के केन्द्र में हमेशा देवतुल्य कार्यकर्ता ही होता है। अब जब चुनावी दावेदारी के बीच ये बम फटा है तो इसकी आवाज से ही कार्यकर्ता सहम गया है। वो अब इस बात को छुपायेगा कि वो अपना बॉयोडाटा लेकर किसके पास गया है और किसके पास नहीं गया है। जब उसे ये पता चलेगा कि एमएलसी की अपनी ही पार्टी के विधायक से नहीं बन रही है तो वो दोनों के बीच विवाद में नहीं पड़ेगा। जब उसे पता चलेगा कि राज्यसभा सांसद का साथ उसके लिए अन्य से दूरी बढ़ा देगा तो वो मजबूरी में कोई दूसरा दर तलाशेगा। यहां पर कार्यकर्ता के सामने संभावित डैमेज ये भी है कि यदि वो एक विधायक के यहां गये और दूसरे जनप्रतिनिधि को पता चला तो वो बुरा ना मान जाये। ये भी हो सकता है कि इस बात पर ही किसी जनप्रतिनिधि के दरवाजे किसी दावेदार के लिए साईलेंटली बंद हो जायें। अब या तो कार्यकर्ता झूठ बोलेगा या फिर गुटबाजी बढ़ेगी। इसमें नुकसान कार्यकर्ताओं का होगा। इसलिए इस संभावित नुकसान को रोकने के लिए संगठन के पदाधिकारियों को पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को इस घमासान को खत्म कराना चाहिए। जिस गाजियाबाद में भाजपा को देश का सबसे बड़ा जनादेश मिला है वहां पर पार्टी के जनप्रतिनिधियों का ये आपसी कलेश कहीं से कहीं तक भी ठीक नहीं माना जा सकता।